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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 12

तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रिय: |उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये || 12|| tatraikāgraṁ manaḥ kṛitvā yata-chittendriya-kriyaḥupaviśhyāsane yuñjyād yogam ātma-viśhuddhaye Audio भावार्थ: उस आसन पर बैठकर चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करे॥12॥ Translation Seated firmly on it, the yogi should strive to purify […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 11

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन: |नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् || 11|| śhuchau deśhe pratiṣhṭhāpya sthiram āsanam ātmanaḥnātyuchchhritaṁ nāti-nīchaṁ chailājina-kuśhottaram Audio भावार्थ: शुद्ध भूमि में, जिसके ऊपर क्रमशः कुशा, मृगछाला और वस्त्र बिछे हैं, जो न बहुत ऊँचा है और न बहुत नीचा, ऐसे अपने आसन को स्थिर स्थापन करके॥11॥ Translation To practice Yog, one should make an […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 10

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थित: |एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रह: || 10|| yogī yuñjīta satatam ātmānaṁ rahasi sthitaḥekākī yata-chittātmā nirāśhīr aparigrahaḥ Audio भावार्थ: मन और इन्द्रियों सहित शरीर को वश में रखने वाला, आशारहित और संग्रहरहित योगी अकेला ही एकांत स्थान में स्थित होकर आत्मा को निरंतर परमात्मा में लगाए॥10॥ Translation Those who seek the state of […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 9

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु |साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते || 9|| suhṛin-mitrāryudāsīna-madhyastha-dveṣhya-bandhuṣhusādhuṣhvapi cha pāpeṣhu sama-buddhir viśhiṣhyate Audio भावार्थ: सुहृद् (स्वार्थ रहित सबका हित करने वाला), मित्र, वैरी, उदासीन (पक्षपातरहित), मध्यस्थ (दोनों ओर की भलाई चाहने वाला), द्वेष्य और बन्धुगणों में, धर्मात्माओं में और पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यन्त श्रेष्ठ है॥9॥ Translation The yogis look upon all—well-wishers, […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 8

ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय: |युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चन: || 8|| jñāna-vijñāna-tṛiptātmā kūṭa-stho vijitendriyaḥyukta ityuchyate yogī sama-loṣhṭāśhma-kāñchanaḥ Audio भावार्थ: जिसका अन्तःकरण ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति विकाररहित है, जिसकी इन्द्रियाँ भलीभाँति जीती हुई हैं और जिसके लिए मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण समान हैं, वह योगी युक्त अर्थात भगवत्प्राप्त है, ऐसे कहा जाता है॥8॥ Translation The yogi […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 7

जितात्मन: प्रशान्तस्य परमात्मा समाहित: |शीतोष्णसुखदु:खेषु तथा मानापमानयो: || 7|| jitātmanaḥ praśhāntasya paramātmā samāhitaḥśhītoṣhṇa-sukha-duḥkheṣhu tathā mānāpamānayoḥ Audio भावार्थ: सरदी-गरमी और सुख-दुःखादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्तःकरण की वृत्तियाँ भलीभाँति शांत हैं, ऐसे स्वाधीन आत्मावाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्दघन परमात्मा सम्यक्‌ प्रकार से स्थित है अर्थात उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवा अन्य […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 6

बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित: |अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ते तात्मैव शत्रुवत् || 6|| bandhur ātmātmanas tasya yenātmaivātmanā jitaḥanātmanas tu śhatrutve vartetātmaiva śhatru-vat Audio भावार्थ: जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र है और जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिए […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 5

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् |आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: || 5|| uddhared ātmanātmānaṁ nātmānam avasādayetātmaiva hyātmano bandhur ātmaiva ripur ātmanaḥ Audio भावार्थ: अपने द्वारा अपना संसार-समुद्र से उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डाले क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है॥5॥ Translation Elevate yourself through the power of […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 4

यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते |सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते || 4|| yadā hi nendriyārtheṣhu na karmasv-anuṣhajjatesarva-saṅkalpa-sannyāsī yogārūḍhas tadochyate Audio भावार्थ: जिस काल में न तो इन्द्रियों के भोगों में और न कर्मों में ही आसक्त होता है, उस काल में सर्वसंकल्पों का त्यागी पुरुष योगारूढ़ कहा जाता है॥4॥ Translation When one is neither attached to sense objects […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 3

आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते |योगारूढस्य तस्यैव शम: कारणमुच्यते || 3|| ārurukṣhor muner yogaṁ karma kāraṇam uchyateyogārūḍhasya tasyaiva śhamaḥ kāraṇam uchyate Audio भावार्थ: योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशील पुरुष के लिए योग की प्राप्ति में निष्काम भाव से कर्म करना ही हेतु कहा जाता है और योगारूढ़ हो जाने पर उस योगारूढ़ पुरुष का […]