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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 2

यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव |न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन || 2|| yaṁ sannyāsam iti prāhur yogaṁ taṁ viddhi pāṇḍavana hyasannyasta-saṅkalpo yogī bhavati kaśhchana Audio भावार्थ: हे अर्जुन! जिसको संन्यास (गीता अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका खुलासा अर्थ लिखा है।) ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग (गीता अध्याय 3 श्लोक […]

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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 1

श्रीभगवानुवाच |अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य: |स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: || 1|| śhrī bhagavān uvāchaanāśhritaḥ karma-phalaṁ kāryaṁ karma karoti yaḥsa sannyāsī cha yogī cha na niragnir na chākriyaḥ Audio भावार्थ: श्री भगवान बोले- जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 29

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् |सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति || 29|| bhoktāraṁ yajña-tapasāṁ sarva-loka-maheśhvaramsuhṛidaṁ sarva-bhūtānāṁ jñātvā māṁ śhāntim ṛichchhati Audio भावार्थ: मेरा भक्त मुझको सब यज्ञ और तपों का भोगने वाला, सम्पूर्ण लोकों के ईश्वरों का भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण भूत-प्राणियों का सुहृद् अर्थात स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी, ऐसा तत्व से जानकर शान्ति को प्राप्त होता […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 28

यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण: |विगतेच्छाभयक्रोधो य: सदा मुक्त एव स: || 28|| yatendriya-mano-buddhir munir mokṣha-parāyaṇaḥvigatechchhā-bhaya-krodho yaḥ sadā mukta eva saḥ Audio भावार्थ: ऐसा जो मोक्षपरायण मुनि (परमेश्वर के स्वरूप का निरन्तर मनन करने वाला।) इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है, वह सदा मुक्त ही है॥27-28॥ Translation and thus controlling the senses, mind, and intellect, the […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 27

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: |प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ || 27|| sparśhān kṛitvā bahir bāhyānśh chakṣhuśh chaivāntare bhruvoḥprāṇāpānau samau kṛitvā nāsābhyantara-chāriṇau Audio भावार्थ: बाहर के विषय-भोगों को न चिन्तन करता हुआ बाहर ही निकालकर और नेत्रों की दृष्टि को भृकुटी के बीच में स्थित करके तथा नासिका में विचरने वाले प्राण और अपानवायु को सम करके, जिसकी […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 27

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: | प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ || 27||   sparśhān kṛitvā bahir bāhyānśh chakṣhuśh chaivāntare bhruvoḥ prāṇāpānau samau kṛitvā nāsābhyantara-chāriṇau Audio भावार्थ: बाहर के विषय-भोगों को न चिन्तन करता हुआ बाहर ही निकालकर और नेत्रों की दृष्टि को भृकुटी के बीच में स्थित करके तथा नासिका में विचरने वाले प्राण और अपानवायु को […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 26

कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् |अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् || 26|| kāma-krodha-viyuktānāṁ yatīnāṁ yata-chetasāmabhito brahma-nirvāṇaṁ vartate viditātmanām Audio भावार्थ: काम-क्रोध से रहित, जीते हुए चित्तवाले, परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किए हुए ज्ञानी पुरुषों के लिए सब ओर से शांत परब्रह्म परमात्मा ही परिपूर्ण है॥26॥ Translation For those sanyāsīs, who have broken out of anger and lust through […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 25

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषय: क्षीणकल्मषा: |छिन्नद्वैधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: || 25|| labhante brahma-nirvāṇam ṛiṣhayaḥ kṣhīṇa-kalmaṣhāḥchhinna-dvaidhā yatātmānaḥ sarva-bhūta-hite ratāḥ Audio भावार्थ: जिनके सब पाप नष्ट हो गए हैं, जिनके सब संशय ज्ञान द्वारा निवृत्त हो गए हैं, जो सम्पूर्ण प्राणियों के हित में रत हैं और जिनका जीता हुआ मन निश्चलभाव से परमात्मा में स्थित है, वे ब्रह्मवेत्ता […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 24

योऽन्त:सुखोऽन्तरारामस्तथान्तज्र्योतिरेव य: ।स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ।। 24।। yo ‘ntaḥ-sukho ‘ntar-ārāmas tathāntar-jyotir eva yaḥsa yogī brahma-nirvāṇaṁ brahma-bhūto ‘dhigachchhati Audio भावार्थ: जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्य योगी शांत ब्रह्म […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 23

शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् |कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: || 23|| śhaknotīhaiva yaḥ soḍhuṁ prāk śharīra-vimokṣhaṇātkāma-krodhodbhavaṁ vegaṁ sa yuktaḥ sa sukhī naraḥ Audio भावार्थ: जो साधक इस मनुष्य शरीर में, शरीर का नाश होने से पहले-पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष […]