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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 12

युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् |अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते || 12|| yuktaḥ karma-phalaṁ tyaktvā śhāntim āpnoti naiṣhṭhikīmayuktaḥ kāma-kāreṇa phale sakto nibadhyate Audio भावार्थ: कर्मयोगी कर्मों के फल का त्याग करके भगवत्प्राप्ति रूप शान्ति को प्राप्त होता है और सकामपुरुष कामना की प्रेरणा से फल में आसक्त होकर बँधता है॥12॥ Translation Offering the results of […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 11

कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि |योगिन: कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये || 11|| kāyena manasā buddhyā kevalair indriyair apiyoginaḥ karma kurvanti saṅgaṁ tyaktvātma-śhuddhaye Audio भावार्थ: कर्मयोगी ममत्वबुद्धिरहित केवल इन्द्रिय, मन, बुद्धि और शरीर द्वारा भी आसक्ति को त्याग कर अन्तःकरण की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं॥11॥ Translation The yogis, while giving up attachment, perform actions with […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 10

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति य: |लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा || 10|| brahmaṇyādhāya karmāṇi saṅgaṁ tyaktvā karoti yaḥlipyate na sa pāpena padma-patram ivāmbhasā Audio भावार्थ: जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके और आसक्ति को त्याग कर कर्म करता है, वह पुरुष जल से कमल के पत्ते की भाँति पाप से लिप्त […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 9

प्रलपन्विसृजन्गृह्ण्न्नुन्मिषन्निमिषन्नपि |इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् || 9|| pralapan visṛijan gṛihṇann unmiṣhan nimiṣhann apiindriyāṇīndriyārtheṣhu vartanta iti dhārayan Audio भावार्थ: और मूँदता हुआ भी, सब इन्द्रियाँ अपने-अपने अर्थों में बरत रही हैं- इस प्रकार समझकर निःसंदेह ऐसा मानें कि मैं कुछ भी नहीं करता हूँ॥9॥ Translation With the light of divine knowledge, they see that it is […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 8

नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित् |पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् || 8|| naiva kiñchit karomīti yukto manyeta tattva-vitpaśhyañ śhṛiṇvan spṛiśhañjighrann aśhnangachchhan svapañśhvasan Audio भावार्थ: तत्व को जानने वाला सांख्ययोगी तो देखता हुआ, सुनता हुआ, स्पर्श करता हुआ, सूँघता हुआ, भोजन करता हुआ, गमन करता हुआ, सोता हुआ, श्वास लेता हुआ, बोलता हुआ, त्यागता हुआ, ग्रहण करता हुआ तथा आँखों […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 7

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: |सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते || 7|| yoga-yukto viśhuddhātmā vijitātmā jitendriyaḥsarva-bhūtātma-bhūtātmā kurvann api na lipyate Audio भावार्थ: जिसका मन अपने वश में है, जो जितेन्द्रिय एवं विशुद्ध अन्तःकरण वाला है और सम्पूर्ण प्राणियों का आत्मरूप परमात्मा ही जिसका आत्मा है, ऐसा कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता॥7॥ Translation The karm […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 6

संन्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: |योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति || 6|| sannyāsas tu mahā-bāho duḥkham āptum ayogataḥyoga-yukto munir brahma na chireṇādhigachchhati Audio भावार्थ: परन्तु हे अर्जुन! कर्मयोग के बिना संन्यास अर्थात्‌ मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाले सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन का त्याग प्राप्त होना कठिन है और भगवत्स्वरूप को मनन करने वाला कर्मयोगी परब्रह्म परमात्मा को […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 5

यत्साङ्ख्यै: प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते |एकं साङ्ख्यं च योगं च य: पश्यति स पश्यति || 5|| yat sānkhyaiḥ prāpyate sthānaṁ tad yogair api gamyateekaṁ sānkhyaṁ cha yogaṁ cha yaḥ paśhyati sa paśhyati Audio भावार्थ: ज्ञान योगियों द्वारा जो परमधाम प्राप्त किया जाता है, कर्मयोगियों द्वारा भी वही प्राप्त किया जाता है। इसलिए जो पुरुष ज्ञानयोग […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 4

साङ्ख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदन्ति न पण्डिता: |एकमप्यास्थित: सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् || 4|| sānkhya-yogau pṛithag bālāḥ pravadanti na paṇḍitāḥekamapyāsthitaḥ samyag ubhayor vindate phalam Audio भावार्थ: उपर्युक्त संन्यास और कर्मयोग को मूर्ख लोग पृथक्‌-पृथक् फल देने वाले कहते हैं न कि पण्डितजन, क्योंकि दोनों में से एक में भी सम्यक्‌ प्रकार से स्थित पुरुष दोनों के फलरूप परमात्मा को […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 3

ज्ञेय: स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ् क्षति |निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते || 3|| jñeyaḥ sa nitya-sannyāsī yo na dveṣhṭi na kāṅkṣhatinirdvandvo hi mahā-bāho sukhaṁ bandhāt pramuchyate Audio भावार्थ: हे अर्जुन! जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी सदा संन्यासी ही समझने योग्य […]