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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 2

श्रीभगवानुवाच |संन्यास: कर्मयोगश्च नि:श्रेयसकरावुभौ |तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते || 2|| śhrī bhagavān uvāchasannyāsaḥ karma-yogaśh cha niḥśhreyasa-karāvubhautayos tu karma-sannyāsāt karma-yogo viśhiṣhyate Audio भावार्थ: श्री भगवान बोले- कर्म संन्यास और कर्मयोग- ये दोनों ही परम कल्याण के करने वाले हैं, परन्तु उन दोनों में भी कर्म संन्यास से कर्मयोग साधन में सुगम होने से श्रेष्ठ है॥2॥ Translation The […]

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Bhagavad Gita: Chapter 5, Verse 1

अर्जुन उवाच |संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि |यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् || 1|| arjuna uvāchasannyāsaṁ karmaṇāṁ kṛiṣhṇa punar yogaṁ cha śhansasiyach chhreya etayor ekaṁ tan me brūhi su-niśhchitam Audio भावार्थ: अर्जुन बोले- हे कृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिए इन दोनों में से जो एक […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 42

तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मन: |छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत || 42|| tasmād ajñāna-sambhūtaṁ hṛit-sthaṁ jñānāsinātmanaḥchhittvainaṁ sanśhayaṁ yogam ātiṣhṭhottiṣhṭha bhārata Audio भावार्थ: इसलिए हे भरतवंशी अर्जुन! तू हृदय में स्थित इस अज्ञानजनित अपने संशय का विवेकज्ञान रूप तलवार द्वारा छेदन करके समत्वरूप कर्मयोग में स्थित हो जा और युद्ध के लिए खड़ा हो जा॥42॥ Translation Therefore, with the […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 41

योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम् |आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय || 41|| yoga-sannyasta-karmāṇaṁ jñāna-sañchhinna-sanśhayamātmavantaṁ na karmāṇi nibadhnanti dhanañjaya Audio भावार्थ: हे धनंजय! जिसने कर्मयोग की विधि से समस्त कर्मों का परमात्मा में अर्पण कर दिया है और जिसने विवेक द्वारा समस्त संशयों का नाश कर दिया है, ऐसे वश में किए हुए अन्तःकरण वाले पुरुष को कर्म नहीं […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 40

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति |नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन: || 40|| ajñaśh chāśhraddadhānaśh cha sanśhayātmā vinaśhyatināyaṁ loko ’sti na paro na sukhaṁ sanśhayātmanaḥ Audio भावार्थ: विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है। ऐसे संशययुक्त मनुष्य के लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है॥40॥ […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 39

द्धावान् लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय: |ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति || 39|| śhraddhāvān labhate jñānaṁ tat-paraḥ sanyatendriyaḥjñānaṁ labdhvā parāṁ śhāntim achireṇādhigachchhati Audio भावार्थ: जितेन्द्रिय, साधनपरायण और श्रद्धावान मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है तथा ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के- तत्काल ही भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति को प्राप्त हो जाता है॥39॥ Translation Those whose faith […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 38

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते |तत्स्वयं योगसंसिद्ध: कालेनात्मनि विन्दति || 38|| na hi jñānena sadṛiśhaṁ pavitramiha vidyatetatsvayaṁ yogasansiddhaḥ kālenātmani vindati Audio भावार्थ: इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसंदेह कुछ भी नहीं है। उस ज्ञान को कितने ही काल से कर्मयोग द्वारा शुद्धान्तःकरण हुआ मनुष्य अपने-आप ही आत्मा में पा लेता […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 37

यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन |ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा || 37|| yathaidhānsi samiddho ’gnir bhasma-sāt kurute ’rjunajñānāgniḥ sarva-karmāṇi bhasma-sāt kurute tathā Audio भावार्थ: क्योंकि हे अर्जुन! जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधनों को भस्ममय कर देता है, वैसे ही ज्ञानरूप अग्नि सम्पूर्ण कर्मों को भस्ममय कर देता है॥37॥ Translation As a kindled fire reduces wood to ashes, O Arjun, so […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 36

अपि चेदसि पापेभ्य: सर्वेभ्य: पापकृत्तम: |सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि || 36|| api ched asi pāpebhyaḥ sarvebhyaḥ pāpa-kṛit-tamaḥsarvaṁ jñāna-plavenaiva vṛijinaṁ santariṣhyasi Audio भावार्थ: यदि तू अन्य सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तो भी तू ज्ञान रूप नौका द्वारा निःसंदेह सम्पूर्ण पाप-समुद्र से भलीभाँति तर जाएगा॥36॥ Translation Even those who are considered the […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 35

यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव |येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि || 35|| yaj jñātvā na punar moham evaṁ yāsyasi pāṇḍavayena bhūtānyaśheṣheṇa drakṣhyasyātmanyatho mayi Audio भावार्थ: जिसको जानकर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त होगा तथा हे अर्जुन! जिस ज्ञान द्वारा तू सम्पूर्ण भूतों को निःशेषभाव से पहले अपने में (गीता अध्याय 6 श्लोक 29 […]