तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया |उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन: || 34|| tad viddhi praṇipātena paripraśhnena sevayāupadekṣhyanti te jñānaṁ jñāninas tattva-darśhinaḥ Audio भावार्थ: उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भलीभाँति दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्व को भलीभाँति जानने वाले […]
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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 33
श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञ: परन्तप |सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते || 33|| śhreyān dravya-mayād yajñāj jñāna-yajñaḥ parantapasarvaṁ karmākhilaṁ pārtha jñāne parisamāpyate Audio भावार्थ: हे परंतप अर्जुन! द्रव्यमय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ अत्यन्त श्रेष्ठ है तथा यावन्मात्र सम्पूर्ण कर्म ज्ञान में समाप्त हो जाते हैं॥33॥ Translation O subduer of enemies, sacrifice performed in knowledge is superior to any […]
Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 32
एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे |कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे || 32|| evaṁ bahu-vidhā yajñā vitatā brahmaṇo mukhekarma-jān viddhi tān sarvān evaṁ jñātvā vimokṣhyase Audio भावार्थ: इसी प्रकार और भी बहुत तरह के यज्ञ वेद की वाणी में विस्तार से कहे गए हैं। उन सबको तू मन, इन्द्रिय और शरीर की क्रिया द्वारा सम्पन्न होने […]
Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 31
यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् |नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्य: कुरुसत्तम || 31|| yajña-śhiṣhṭāmṛita-bhujo yānti brahma sanātanamnāyaṁ loko ’styayajñasya kuto ’nyaḥ kuru-sattama Audio भावार्थ: हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन! यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले योगीजन सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं। और यज्ञ न करने वाले पुरुष के लिए तो यह मनुष्यलोक भी सुखदायक नहीं […]
Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 30
अपरे नियताहारा: प्राणान्प्राणेषु जुह्वति |सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषा: || 30|| apare niyatāhārāḥ prāṇān prāṇeṣhu juhvatisarve ’pyete yajña-vido yajña-kṣhapita-kalmaṣhāḥ Audio भावार्थ: अपान की गति को रोककर प्राणों को प्राणों में ही हवन किया करते हैं। ये सभी साधक यज्ञों द्वारा पापों का नाश कर देने वाले और यज्ञों को जानने वाले हैं॥30॥ Translation Yet others curtail their […]
Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 29
अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे |प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणा: || 29|| apāne juhvati prāṇaṁ prāṇe ’pānaṁ tathāpareprāṇāpāna-gatī ruddhvā prāṇāyāma-parāyaṇāḥ Audio भावार्थ: दूसरे कितने ही योगीजन अपान वायु में प्राणवायु को हवन करते हैं, वैसे ही अन्य योगीजन प्राणवायु में अपान वायु को हवन करते हैं तथा अन्य कितने ही नियमित आहार (गीता अध्याय 6 श्लोक 17 […]
Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 28
द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे |स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतय: संशितव्रता: || 28|| dravya-yajñās tapo-yajñā yoga-yajñās tathāpareswādhyāya-jñāna-yajñāśh cha yatayaḥ sanśhita-vratāḥ Audio भावार्थ: कई पुरुष द्रव्य संबंधी यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही तपस्या रूप यज्ञ करने वाले हैं तथा दूसरे कितने ही योगरूप यज्ञ करने वाले हैं, कितने ही अहिंसादि तीक्ष्णव्रतों से युक्त यत्नशील पुरुष स्वाध्यायरूप ज्ञानयज्ञ करने वाले हैं॥28॥ Translation […]
Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 27
सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे |आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते || 27|| sarvāṇīndriya-karmāṇi prāṇa-karmāṇi chāpareātma-sanyama-yogāgnau juhvati jñāna-dīpite Audio भावार्थ: दूसरे योगीजन इन्द्रियों की सम्पूर्ण क्रियाओं और प्राणों की समस्त क्रियाओं को ज्ञान से प्रकाशित आत्म संयम योगरूप अग्नि में हवन किया करते हैं (सच्चिदानंदघन परमात्मा के सिवाय अन्य किसी का भी न चिन्तन करना ही उन सबका हवन करना […]
Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 26
श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति |शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति || 26|| śhrotrādīnīndriyāṇyanye sanyamāgniṣhu juhvatiśhabdādīn viṣhayānanya indriyāgniṣhu juhvati Audio भावार्थ: अन्य योगीजन श्रोत्र आदि समस्त इन्द्रियों को संयम रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं और दूसरे योगी लोग शब्दादि समस्त विषयों को इन्द्रिय रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं॥26॥ Translation Others offer hearing and other senses in […]
Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 25
दैवमेवापरे यज्ञं योगिन: पर्युपासते |ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति || 25|| daivam evāpare yajñaṁ yoginaḥ paryupāsatebrahmāgnāvapare yajñaṁ yajñenaivopajuhvati Audio भावार्थ: दूसरे योगीजन देवताओं के पूजनरूप यज्ञ का ही भलीभाँति अनुष्ठान किया करते हैं और अन्य योगीजन परब्रह्म परमात्मारूप अग्नि में अभेद दर्शनरूप यज्ञ द्वारा ही आत्मरूप यज्ञ का हवन किया करते हैं। (परब्रह्म परमात्मा में ज्ञान द्वारा […]