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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 4

अर्जुन उवाच |अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वत: |कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति || 4|| arjuna uvāchaaparaṁ bhavato janma paraṁ janma vivasvataḥkatham etad vijānīyāṁ tvam ādau proktavān iti Audio भावार्थ: अर्जुन बोले- आपका जन्म तो अर्वाचीन-अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात कल्प के आदि में हो चुका था। तब मैं इस […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 3

स एवायं मया तेऽद्य योग: प्रोक्त: पुरातन: |भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् || 3|| sa evāyaṁ mayā te ’dya yogaḥ proktaḥ purātanaḥbhakto ’si me sakhā cheti rahasyaṁ hyetad uttamam Audio भावार्थ: तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिए वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 2

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु: |स कालेनेह महता योगो नष्ट: परन्तप || 2|| evaṁ paramparā-prāptam imaṁ rājarṣhayo viduḥsa kāleneha mahatā yogo naṣhṭaḥ parantapa Audio भावार्थ: हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किन्तु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया॥2॥ Translation O […]

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Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 1

श्रीभगवानुवाच |इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् |विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् || 1|| śhrī bhagavān uvāchaimaṁ vivasvate yogaṁ proktavān aham avyayamvivasvān manave prāha manur ikṣhvākave ’bravīt Audio भावार्थ: श्री भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा॥1॥ Translation […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 43

एवं बुद्धे: परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना |जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् || 43|| evaṁ buddheḥ paraṁ buddhvā sanstabhyātmānam ātmanājahi śhatruṁ mahā-bāho kāma-rūpaṁ durāsadam Audio भावार्थ: इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात सूक्ष्म, बलवान और अत्यन्त श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि द्वारा मन को वश में करके हे महाबाहो! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 42

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन: |मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स: || 42|| indriyāṇi parāṇyāhur indriyebhyaḥ paraṁ manaḥmanasas tu parā buddhir yo buddheḥ paratas tu saḥ Audio भावार्थ: इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानी श्रेष्ठ, बलवान और सूक्ष्म कहते हैं। इन इन्द्रियों से पर मन है, मन से भी पर बुद्धि है और जो बुद्धि […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 40

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते |एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् || 40|| indriyāṇi mano buddhir asyādhiṣhṭhānam uchyateetair vimohayatyeṣha jñānam āvṛitya dehinam Audio भावार्थ: इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि- ये सब इसके वासस्थान कहे जाते हैं। यह काम इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है। ॥40॥ Translation The senses, mind, and intellect […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 39

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा |कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च || 39|| āvṛitaṁ jñānam etena jñānino nitya-vairiṇākāma-rūpeṇa kaunteya duṣhpūreṇānalena cha Audio भावार्थ: और हे अर्जुन! इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले काम रूप ज्ञानियों के नित्य वैरी द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढँका हुआ है॥39॥ Translation The knowledge of even the most discerning gets covered […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 38

धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च |यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् || 38|| dhūmenāvriyate vahnir yathādarśho malena chayatholbenāvṛito garbhas tathā tenedam āvṛitam Audio भावार्थ: जिस प्रकार धुएँ से अग्नि और मैल से दर्पण ढँका जाता है तथा जिस प्रकार जेर से गर्भ ढँका रहता है, वैसे ही उस काम द्वारा यह ज्ञान ढँका रहता है॥38॥ Translation Just as a […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 37

श्रीभगवानुवाच |काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भव: ||महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् || 37|| śhrī bhagavān uvāchakāma eṣha krodha eṣha rajo-guṇa-samudbhavaḥmahāśhano mahā-pāpmā viddhyenam iha vairiṇam Audio भावार्थ: श्री भगवान बोले- रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है। यह बहुत खाने वाला अर्थात भोगों से कभी न अघानेवाला और बड़ा पापी है। इसको ही तू इस […]